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Sunday, July 24, 2011

भूमि अधिग्रहण-


आखिर कैसी है ये सब नीतियाँ सरकार की
नहीं है चिंता कोई किसानों के रोजगार की
विकास की दौड़ में ये रुख कहाँ मोड़ दिया
भू-रक्षकों का भूमि से ही नाता तोड़ दिया
वो जो  बनकर अन्नदाता, मानवता दिखलाते रहे
देश को पालने को, अपना खून पसीना बहाते रहे
देकर लालच उन्ही को, उन्ही की जेबें ली खंगाल
हड़प कर जमीं उनकी, कर दिया सबको कंगाल
ये कैसा विकास है, ये कैसा शहरीकरण है
कृषि योग्य भूमि का ही हो रहा अधिग्रहण है
महल खड़े करने है आपको शौक से कीजिये
देने है आवास सभी को, गर्व से दीजिये
पर उस जमीं पर क्यों, जहाँ फसलें लहराती है
एक अनपढ़ को भी अन्नदाता का एहसास कराती है
जहाँ बैसाख में गेंहू की सुनहरी बालियाँ चमकती है
तो बरसात के बाद बासमती की खुशबू महकती है
वो चने की खन- खन वो गन्ने के खेत
अब क्यूं नजर आ रही है वहां उडती हुई रेत
जिस खेत की मिटटी, सोना है उगलती
उसी मिटटी को आज, विषैली नागिनें है निगलती
बोलते हो तुम हम सड़कें है बना रहे
सड़कें बनने के फायदे भी तुम गिना रहे
पर क्या तुम सोचते हो, तुम कितनो को उजाड़ रहे
भविष्य ना जाने, कितनो का बिगाड़ रहे
आज भले ही लालच देकर, डाल रहे हो फूट
कल कहीं वो ही ना करने लगे उसी सड़कों पर लूट
तुम जो आज कृषि भू पर इमारतें हो चिन रहे
सच तो यह है, हजारों लोगों के रोजगार है छिन रहे
कृषि भूमि छीन कर काट रहे हो किसानों के हाथ क्यूं
पीठ पर भले ही मारो पर पेट पर लात क्यूं
ख़ुशी मना लो आज, कल तुम भी पछताओगे
नहीं रहेगी जमीं तो फिर अन्न कहाँ उगाओगे
पैसा तो रहेगा खूब, पर होगी नहीं रोटी तब
खिलाओगे क्या उसको, रोटी होगी बेटी जब
वक़्त अभी भी है अन्न की कमी से बचने का
विकास से पहले भविष्य के बारे में सोचने का
लाओ नये कानून, बंद करो अब दलाली को
फूलों को उजाड़कर न रुलाओ चमन के माली को
किसान नहीं बहाता पसीना, अपने पेट के लिए
वो पैदा करता है अन्न, पूरे देश के लिए
उसी अन्नदाता के साथ ये अन्याय क्यूं हो रहा
शहरीकरण की दौड़ में वो अपने खेत क्यूं खो रहा
नहीं है मेरा प्रश्न किसी देश या प्रदेश सरकार से
कर रहे जो भू दलाली या किसी ठेकेदार से
मैं तो पूछता हूँ केवल बुद्धिजीवी समाज से
किसी भविष्य से नहीं बल्कि वर्तमान आज से
मानता हूँ है जरूरत आवास और मकान की
सड़कें, कारखानें, शोपिंग माल और दुकान की
पर क्या इन सब के लिए बंजर कर दे जमीं
कृषि योग्य भूमि की क्या कोई जरूरत नहीं
जिस तरह से जनसँख्या देश की है बढ़ रही
बेलगाम महंगाई दिन-प्रतिदिन है चढ़ रही
पर राहू के हाथो ये कैसा चंद्रग्रहण हो रहा
सोना उगलती जमीन का क्यों अधिग्रहण हो रहा
अब तो उपजाऊ जमीं का अधिग्रहण बंद कीजिये
देश की अन्न भूमि का दलालिकरण बंद कीजिये.
- विभोर गुप्ता

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