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Wednesday, July 6, 2011

माँ की सीख-

(एक बार एक लड़की ने मुझसे कहा की आप अच्छा लिखते हो. मैंने उससे कहा की कभी मुशायरे या कवि सम्मलेन में सुनने आ जाया करो, बोली की माँ ने मना किया है. मैंने कहा और क्या मना किया है माँ ने? तब उसने जो बताया, वो मैं आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ.)

किसी की चाहत की शराब, अपने होठों से तुम ना पिया करो
माँ कहती है मेरी, किसी अजनबी को अपना पता ना दिया करो

शातिर होते है दिल चुराने में, दिल की बातें लिखने वाले
मिलो किसी शायर से भले ही, पर बातें दिल की ना किया करो

रसों से भरी हुआ करती है पंक्तियाँ ग़ज़लों और गीतों की
सुनो तो गीतों को, पर गीतों के रस में डूब कर ना जिया करो

मुसाफिर है कवि और शायर तो, आज यहाँ कल कहीं और होंगे
छोड़ जायेंगे मझधार में तुमको, इन पर भरोसा ना किया करो

भौंरों की तो आदत है, फूलों और कलियों पर मंडराने की
कोई काम भले ही रुक जाये, मगर ‘विभोर’ के एहसान ना लिया करो.

-विभोर गुप्ता

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