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Thursday, June 23, 2011
वो काली रात
हिंसक-क्रूर पशुओं के हाथों, हैवानियत मानवता को कुचल रही थी
क्रांति-भावना के दमन को, सत्ता यौवन की भाँति मचल रही थी
काली रात में रोया था लोकतंत्र, तानाशाही का मचा था कोहराम
पर सिक्कों की खन-खन पर, तवायफें घूँघरू बांधें उछल रही थी.
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