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Friday, June 17, 2011

शराब-



जब थे कभी अनजान इससे, तब लुभाया शराब ने
जो नही किया था वादा कभी, वो भी निभाया शराब ने

हम तो जिया करते थे तन्हा ही, जिन्दगी को
ना जाने किन-किन चेहरों से मिलवाया शराब ने

नही था कोई जूनून, कुछ सिखने का दिल में,
तब इस दिल को, जाने क्या-क्या सिखाया शराब ने

शौक से जिया करते थे अपने गली-मोहल्लों में,
अपनी गलियीं का भी रस्ता, भटकाया शराब ने

मानते थे लोहा सभी हमारे हिसाब-किताब का,
दो पैग के बाद, गिनतियों को भी भुलाया शराब ने

जहाँ तैरने की कोशिश भी नही, कर सकते थे हम,
उस बीच मझधार में ले जाकर, डुबाया शराब ने

कभी मेरी ताकत का खौफ, तो कभी जमींदारी का रौब,
मेरी जवानी, मेरी कहानी, सब कुछ लुटवाया शराब ने

गर्व से रखा था नाम हमारा, माँ-बाप ने,
शराबी, पियक्कड़, बेवडा नाम दिलाया शराब ने

किसी-किसी को तो दुनिया से ही उठाती शराब है,
पर हमको तो नज़रों में उनकी गिराया शराब ने

हम तो किया करते थे, हमेशा ही परहेज इन सबसे
सीधा-सादे 'विभोर' को शायर बनाया शराब ने

भले ही हिन्दू-मुस्लिम को हो मिलाया शराब ने,
पर अपने सगों को तो बनाया, पराया शराब ने

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