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Saturday, September 11, 2010

कोई मतलब नहीं बनता है ऐसी झूटी आजादी का
जहाँ खूनी खेल रचा जा रहा हो मुल्क की बरबादी का
जहाँ रुपयों में बदल गया हो देश्धर्म भी खादी का
जहाँ मौत का हुक्म दिया जा रहो एक गोत्र में शादी का

संसद में हंगामा बरपा है, एक खेलो के आयोजन पर
पर कोई चर्चा नही होती यहाँ भूखो के भोजन पर
करोड़ो टन अनाज सड जाता है सरकारी गोदामों में
दूसरी तरफ आग लगी है, गेंहू, चावल के दामो में
भूखे पेटों से जाकर पूछो, क्या मतलब होता है आजादी का
कोई मतलब नहीं बनता है ऐसी झूटी आजादी का.

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