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Saturday, September 11, 2010

आजकल न जाने...

आजकल  मैं  न  जाने  क्यों  कुछ  लिखने  लगा हूँ
ना    चाहते    हुए  भी  परेशान  सा   दिखने  लगा  हूँ
ये  भविष्य  की    चिंताए  है  या  वर्तमान  के  दुःख
इन्ही    बातो   को   सोच  कर    मैं   डरने   लगा    हूँ

सोचा  था  कभी  दुनिया  को  कुछ  करके  दिखाना  है
अपने     आप   को  दुनिया  की    भीड़  से   हटाना  है
पर     अब    तो   इस    भीड़  में    ही  लुटने  लगा  हूँ
अन्दर   ही    अन्दर   अब    तो   घुटने    लगा    हूँ

अब    तो    वो   हालत     हो     गए    है    अपने
ना    आते    है       कोई    ख्वाब ,   ना    कोई  सपने
इन    सपनो  की  दुनिया  से  क्यों  सिमटने  लगा  हूँ
अपने     आप  से     ही   आज कल  निबटने  लगा  हूँ

कहाँ   गया    वो  चेहरा  जो  हमेशा  चहकता  था
वो  प्यार   जो  दिल  में   रोजाना   महकता  था
इस  भीड़  भरी  दुनिया  में  क्यों  खोने  लगा  हूँ
अब  तो  हँसते  हँसते  हुए  भी  मैं  रोने  लगा  हूँ

क्यों  याद  आ  रही  है   वो  बचपन  की  बाते
वो   प्यारे   प्यारे  दिन   वो   सुहानी     राते
अब  तो  रातो  में  खुद  को जलाने   लगा  हूँ 
तन्हाइयों    में   खुद   को  बसाने  लगा  हूँ

मुझ  में  नही  है  शायद  कोई  योग्यता
इसी  बात  को  दुनिया  को  बताने  लगा  हूँ
आजकल  मैं  न  जाने  क्यों  कुछ  लिखने  लगा  हूँ.

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