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Tuesday, August 17, 2010

वीर शहीदों को नमन-


(यह रचना मेरी प्रथम रचना है, जो मैंने अपने कॉलेज के दिनों में लिखी थी. यह रचना उन सब शहीदों को समर्पित है जिन्होंने भारत देश की रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए.)

मैं आंसू आंसू रोया हूँ
कुछ रातों से ना सोया हूँ
जो सीमाओं पर बिछुड़ गए
उनकी यादों में खोया हूँ
जो सुहागरात पर नयी नवेली दुल्हन को छोड़ कर चले गए
जो इकलौते होकर भी सीमा पर लड़ने चले गए
जो रण में शोलों के आगे लाश बिछाने चले गए
जो हँसते हँसते प्राणों की बलि चढ़ने चले गए
उन वीर शहीदों की कहानी,  मैं लिखते लिखते रोया हूँ
जो सीमाओं पर बिछुड़ गए उनकी यादों में खोया हूँ
एक माँ अपने बेटे को लहू का टीका करती है
तुम्हारी हो दीर्घायु,  ये दुआ हमेशा करती है
बेटे के इंतज़ार में निगाहें टक टक करती है
पर एक बिना सर की लाश आँगन में उतरती है
क्या बीती होगी माँ के दिल पर, ये सोच-सोच मैं रोया हूँ
जो सीमाओं पर बिछुड़ गए उनकी यादों में खोया हूँ
आज भी रक्षाबंधन पर बहन का हृदय जब रोता है
क्या कहती होगी माँ, जब बेटा पापा पापा कहकर रोता है
चुपके चुपके रोती होंगी आँखें, जब-जब करवा चौथ होता है
लग जाती होगी आग मन में,  जब-जब सावन होता है
इस सावन की बारिशों में, मैं हरदम हरपल रोया हूँ
जो सीमाओं पर बिछुड़ गए उनकी यादों में खोया हूँ
जो सीमाओ पर लड़ते रहे, केवल तिरंगे के लिए
ख़ून की नदियाँ बहाते रहे, केवल तिरंगे के लिए
जिनके प्राणों की आहुति भारत माँ पर बलिहारी है
उनके शौर्य के तेज से सूरज की किरणें भी हारी हैं
उन बेटों का बलिदान हर भारतवासी पर क़र्ज़ होगा
उन वीरों का नाम तो स्वर्ण अक्षर में दर्ज होगा
आज शहीदों की आत्माएँ पुकार रही है हिन्दुस्तान को
नौजवान तैयार हो जाये देश पर बलिदान को
उन शहीदों की चिताओं को मैं कन्धा देते देते रोया हूँ
जो सीमाओं पर बिछुड़ गए उनकी यादों में खोया हूँ.

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