बेरोजगारी का आलम तो देखिये जनाब, हम कितना इसमें तड़प रहे है,
कल तो बस लिखते थे निबंध इस पर, आज खुद ही इस दौर से गुजर रहे है.
जुल्म तो देखिये बेरोजगारी का, हम कैसे कैसे ताने सह रहे है,
कब तक खाओगे बाप की कमाई, अब तो पडौसी भी हमसे कह. रहे है.
सपनो के जो बांधे थे पुल, वो भी ताश के पत्तो की तरह ढह रहे है,
उंचाइयो को छूने के थे जो अरमान, वो भी आंसुओ में बह रहे है.
मत पूछिए कोशिशो में क्या क्या दांव-पेंच नही भिड़ा रहे है,
फिर भी ये डिग्री और certificates हमको बेरोजगार कह कर चिढ़ा रहे है.
बेरोजगारी की इस महाबीमारी में, सभी तो रिश्ते तोड़ रहे है,
जिन्हें कहा करते थे हम अपना, वो भी हमसे मुंह मोड़ रहे है.
जो जिन्दगी लगा करती थी हसीं, उसी जिन्दगी से डर रहे है,
ये तो हम जानते है बेरोजगारी में, जिन्दगी जी रहे है या मर रहे है.
कल तो बस लिखते थे निबंध इस पर, आज खुद ही इस दौर से गुजर रहे है.
जुल्म तो देखिये बेरोजगारी का, हम कैसे कैसे ताने सह रहे है,
कब तक खाओगे बाप की कमाई, अब तो पडौसी भी हमसे कह. रहे है.
सपनो के जो बांधे थे पुल, वो भी ताश के पत्तो की तरह ढह रहे है,
उंचाइयो को छूने के थे जो अरमान, वो भी आंसुओ में बह रहे है.
मत पूछिए कोशिशो में क्या क्या दांव-पेंच नही भिड़ा रहे है,
फिर भी ये डिग्री और certificates हमको बेरोजगार कह कर चिढ़ा रहे है.
बेरोजगारी की इस महाबीमारी में, सभी तो रिश्ते तोड़ रहे है,
जिन्हें कहा करते थे हम अपना, वो भी हमसे मुंह मोड़ रहे है.
जो जिन्दगी लगा करती थी हसीं, उसी जिन्दगी से डर रहे है,
ये तो हम जानते है बेरोजगारी में, जिन्दगी जी रहे है या मर रहे है.
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