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Friday, March 23, 2012

लोकतंत्र पर हावी नोटतंत्र-


सिक्कों का शोर राजनीति में प्रभावी हो गया
नोटतंत्र लोकतंत्र पर  इस कद्र हावी हो गया
राज्यसभा चुनावों में सियासी दलों के ढंग देखिये
पैसे के बल उम्मीदवार उड़ा रहे, रंगीले रंग देखिये

राजनीति के राग अब प्रवासियों को भी भाने लगे
एन.आर.आई.भी राज्यसभा की दावेदारी जताने लगे
उद्योगपति उद्योग छोड़ संसद जाने को तैयार है
फिल्मों में नाचने-गाने वाले भी आज उम्मीदवार है

कहीं पिता की राजनितिक विरासत सँभालने बेटा आ रहा
तो कहीं किसी को मनाने के लिए टिकट दिया जा रहा
बिल्ली के छींकने से देखो आज छींकें टूटने लगे
संसद की दीवारों से जनसेवकों के रिश्तें छूटने लगे

संसद-विधानसभा तस्कर, लुटेरों का घर बन गयी
हत्या, जालसाजी, राहजनी कचहरियों से निडर बन गयी
अमावस्य में डूबे संविधान को अब प्रकाश चाहिए
जन-जन को जगाने हेतु कोई जयप्रकाश चाहिए

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