तानाशाही सत्ता के आगे लोकतंत्र कहाँ जिन्दा है
आंसू भर-भर कर आज तिहाड़ जेल भी शर्मिंदा है
तिरंगे ने बोला है आज, लाल किले की दीवारों से
तेरी ईंटों को भी खतरा है अब, तेरे ही पहरेदारों से
राजघाट चीख रहा है सत्याग्रह के अपमानों पर
कैसा खून बिखेरा तुमने ये गाँधी के अरमानो पर
प्रजा के सेवक प्रजा के अधिकारों का दमन कर बैठे
शांति के राही को ही अशांति जुर्म में अन्दर भर बैठे
लगता है शायद तुम जनता की ताकत को भूल गए
सत्ता के मद में होकर चूर, अत्याचारों में झूल गए
अब वक़्त आ गया है, तुम्हारी औकातें बतलाने का
तुम हिटलरों को जन-गण-मन की ताकत दिखलाने का
देखते है तुम अब किस-किस को भरोगे जेलों में
जाग्रित जनता निकल पड़ी है सडकों, बसों, रेलों में
अब और तुम अपनी मनमर्जी नहीं चला पाओगे
मनमर्जी तो तब चलेगी गर गद्दी पर टिक जाओगे.
-विभोर गुप्ता
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