बाबा, आखिर तुम हमें छोड़ कर चले गये
कैंसर की बीमारी के हाथों, आखिर छले गये
सत्ता-सिंहासन की लाठी के आगे भी तुम थे कभी डरे नही
लाखों चोटें खायी, पर आँखों से आंसू कभी भी झरे नही
कीमत लाख लगायी भले हो, तुम थे जो कभी बिके नही
शासन ने कितना ही हो झुकाया, तुम थे जो कभी झुके नही
तुम्हारे पालन में, गरीब किसान थे पले गये
बाबा, आखिर तुम हमें छोड़ कर चले गये
किसानो के मसीहा थे तुम, दर्द था तुमने खूब पहचाना
किसानो के हक़ में, कभी धरने देना, कभी लाठी खाना
मंच पर खड़े होकर, किसान-क्रांति का वो बिगुल बजाना
अपनी हठ-जिद के आगे, प्रशासन को नाको चने चबाना
किसान-संघर्ष को छोड़, क्यों तुम चले गये
बाबा, आखिर तुम हमें छोड़ कर चले गये
बाबा, तुम बिन सूना किसान-भवन, है तुम्हे पुकार रहा
आ जाओ एक बार फिर, किसान दलालों से फिर है हार रहा
हुक्के की गुड-गुड, पत्तल का खाना, तेरी राह निहार रहा
लौट के आजा फिर से बाबा, अँधेरा फिर दीपक को मार रहा
आँखों में छोड़ आंसू, तुम तो भले गये
बाबा, आखिर तुम हमें छोड़ कर चले गये
बाबा छोड़ गये हमको, लगा जैसे एक युग का अंत हुआ
आंसू झरने लगा है श्रावन, पतझड़ जैसा बसंत हुआ
किसान चेतना को भभकाकर, अमर कोई एक पंथ हुआ
जनसैलाब को दे सन्देश, विदा दुनिया से कोई संत हुआ
लगता है सूर्यदेव, नील गगन में ढले गये
बाबा, आखिर तुम हमें छोड़ कर चले गये
बाबा, आखिर तुम हमें छोड़ कर चले गये
कैंसर की बीमारी के हाथों, आखिर छले गये
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