माँ भारती के दामन पर लगे है दाग,
तब कैसे मैं फाल्गुनी राग सुनाऊं
देश का चित्र है घायल दंगों से
तब कैसे त्यौहारों का चरित्र दिखाऊं
रंग तो हो गए कैद मजहब में
तब कैसे घरों में रंगोली सजाऊं
मेहंदी रोली पर जब गोली हावी हो
तब भला कैसे मैं ये होली मनाऊं.....विभोर गुप्ता
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