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Wednesday, October 5, 2011

दशरथ-नंदन अवतार नहीं धरता-



विजयादशमी के पावन अवसर पर मेरे पास इससे अच्छी कोई रचना नही है. कृपया अपनी प्रतिक्रियाएं देकर इस रचना को सुभाशीष प्रदान करे. 



मेरे देश की भूमि भयभीत है दानवों के आतंक से,
           फिर भी कोई दशरथ-नंदन यहाँ अवतार नहीं धरता
मशालों पर भी कहर बन जाती है निशाचरों की भीड़,
          पुतले जलाने से रावन का वंश कभी मिटा नहीं करता

आज भी जाने कितने सीता-हरण होते है देश में
कितने रावण ढोंग करते है पाखंडियों के वेश में 
स्वर्ण-मृग बन मारीच फिर जानकियों को ललचाता है 
कितनी सीताओं की मर्यादाओं पर काल मंडराता है 

धन और बल की आड़ में निर्भीक बन गए है रावण,
          खींच लो कितनी भी, किसी लक्ष्मण रेखा से नहीं डरता

मेरे देश की भूमि भयभीत है दानवों के आतंक से,
           फिर भी कोई दशरथ-नंदन यहाँ अवतार नहीं धरता

कुम्भकर्णों के पेट भरे किन्तु फिर भी खा रहे है 
बच्चें बिलखते भूख से, पर वो दूध से नहा रहे है 
तिजोरियां भर, सात पीढ़ियों के लिए सपने संजोते है 
भले प्रजा चीखती रहे, वो महलों में चैन से सोते है 

चारा, यूरिया, ताबूत, स्पेक्ट्रम जाने क्या-क्या खाया,
          कितना भी खा ले किन्तु कुम्भकर्णों का पेट नहीं भरता 

मेरे देश की भूमि भयभीत है दानवों के आतंक से,
           फिर भी कोई दशरथ-नंदन यहाँ अवतार नहीं धरता

इन्द्रजीत ने बाँध दिया है देवों को बंधन में 
आज जहरीले सर्पों ने विष घोल दिया है चन्दन में 
धर्म-अधर्म के युद्ध में, अधर्म का पलड़ा भारी है 
निष्ठावादियों की सेनायें, भ्रष्ट कपटियों से हारी है 

आज कोई विभीषण भी तो नहीं, जो भेद ही बतला दे,
           बार-बार शीश काटने  पर भी दशानन नहीं मरता

मेरे देश की भूमि भयभीत है दानवों के आतंक से,
           फिर भी कोई दशरथ-नंदन यहाँ अवतार नहीं धरता


-विभोर गुप्ता  


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