एक बहन अपने भाई को राखी बांधती है, भाई अपनी बहन से पूछता है कि उसे क्या उपहार चाहिए. बहन कहती है...
ना पैसा माँगू, ना कंगन माँगू, ना माँगू बाईक या कार कोई
भैया मेरे, इस रक्षाबंधन, ना देना मुझको उपहार कोई
कदम-कदम पर हवस के शिकारी, जो घात लगाये बैठे है
बस उनके आघातों से बचने का, दे दो मुझको उपचार कोई
चाहे पैदल चलूँ या रिक्शा में, बस में हूँ या रेलों में
सडकों पर रहूँ या मैदानों में, बाजारों में हूँ या मेलों में
इक्कीसवीं सदीके समाज की कामुक नजरें जब मुझ पर टिकती
इंसानी पशुओं की देख शरारत तब मेरी साँसें तक रूकती
लगता है मुझको जैसे धरा पर छाने वाला है अंधकार कोई
भैया मेरे, इस रक्षाबंधन, ना देना मुझको उपहार कोई
बस हैवानी नज़रों से बचने का दे दो मुझको उपचार कोई
ऑफिस में मेरा बॉस मुझको अपने केबिन में बुलाता कितनी बार
किसी न किसी बहाने से मुझे छूने की कोशिश करता कितनी बार
सीनियर हो या जूनियर हो, अब नहीं है किसी को लाज कोई
बहनें तो सबकी होती है, भला क्यों नहीं समझता आज कोई
कितना भी लज्जित कर लो, होता नहीं है शर्मशार कोई
भैया मेरे, इस रक्षाबंधन, ना देना मुझको उपहार कोई
बस हैवानी नज़रों से बचने का दे दो मुझको उपचार कोई
पढ़ा-लिखा सभ्य समाज भी जब अश्लील कमेंट्स करता है
तब मेरी आँखों में क्रोध की ज्वाला का जहर भरता है
किस-किस को बातें सुनाऊँ यहाँ सब के सब तो बहरें है
सभी की बहनों पर, किसी न किसी की नज़रों के पहरें है
छेड़खानी की इन हरकत पर, स्त्री की क्यूं लाचार कोई
भैया मेरे, इस रक्षाबंधन, ना देना मुझको उपहार कोई
बस हैवानी नज़रों से बचने का दे दो मुझको उपचार कोई
बाँध रही हूँ राखी तुमको, बस इतना सा वचन देना तुम
पराई स्त्री को भी अपनी माता और बहन मान लेना तुम
इतना सा वचन निभाना, राखी का सारा क़र्ज़ उतर जायेगा
और सभी ऐसा समझने लगे, तो ये समाज भी सुधर जायेगा
अपनी राखी की कीमत माँगूं, माँग रही ना अधिकार कोई
भैया मेरे, इस रक्षाबंधन, ना देना मुझको उपहार कोई
बस हैवानी नज़रों से बचने का दे दो मुझको उपचार कोई.
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