राजनीति की कीचड से आज संसद की गलियाँ गन्दी है
सत्य, धर्म, ईमानदारी तो खादी के घर में बन्दी है
अंधियारों में खोट दिखाई नहीं देगी उनको, चूंकि
नैतिकता का चश्मा टूट गया, इसलिए सत्ता अंधी है.
यूं तो कहने को सरकार लोकतंत्र की प्रहरी है
पर आजकल तो उसे भी आई नींद गहरी है
पूरा देश चीख रहा है, अन्ना तुम संघर्ष करो
पर आवाजें सुनाई नहीं देती क्योंकि सत्ता बहरी है.
गद्दी पर जो बैठे है उनका काम ही है दलाल का
क्यों चाहे वो बने सख्त कानून जनलोकपाल का
देश ने पूछा उनसे, तुम भ्रष्टाचार क्यों मिटाते नहीं
पर जब शासन हो गूंगा तो कैसे जवाब दे वो सवाल का.
वो भ्रष्टाचार मिटाने की बातें तो करते दिन-रात है
पर पर्दों के पीछे वो घोटालेबाजों के ही साथ है
हमने कहा, दण्डित करो कलमाड़ी और राजाओं को
पर कैसे, सत्ता के पास तो हाथ है ना लात है.
गांधी वाली खादी अब ईमानदारी से विहीन हो गयी
माँ भारती अब तानाशाहों के घर में पराधीन हो गयी
गूंगे भी है, बहरें भी है, अन्धें भी है, लंगड़े भी है
लगता है दिल्ली अब नाकारे अपाहिजों के आधीन हो गयी.
-विभोर गुप्ता