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Thursday, April 14, 2011

शहरीकरण और समाज

नोयडा मे एक फ्लैट में खुद को सात महीने से बंद रखने वाली दो बहनों का मामला उनकी मानसिक अवस्था और बीमारी का तो है ही, हमारे विकास और शहरीकरण तथा समाज के विखंडित होते जाने के प्रभावों की कहानी भी कहता है।



टूट जाती है डोरियां, राखियों की भी तब
मुंह मोड लेता है भाई, बहन की जिम्मेदारी से जब
ना समझ पाये कोई कलाई पर बंधी डोरी का अर्थ
तो फ़िर रक्षाबंधन और भैयादूज के त्योहारों का मतलब ही क्या है?

मिल जाता है मिट्टीयों मे अर्थ, उच्च शिक्षा का भी तब,
घिर जाये अवसादों मे, कुछः गम्भीर स्थितियां आने पर जब
गर ना सिखा पाये लडना हमे, हालतों के आने पर
तो फ़िर ऐसी इन्जिनियर और accauntant की पढाई का मतलब ही क्या है?

मिट जाती है मानवता, क्रूर हो जाती है भावना भी तब 
महीनों से कैद लडकियों  की खबर भी नहीं पडौसी को जब
ना जान सके हम अपने किसी पडौसी का भी दर्द
तो फ़िर ऐसी high profile residential कालोनी का मतलब ही क्या है?

खत्म हो जाते है रिश्तें, बिखर जाता है समाज भी तब 
पर्सनल लाईफ़् के नाम पर, पसंद ना हो किसी की दखलन्दाजी भी जब
ना साझा कर सके संवेदनायें भी, गर किसी के साथ हम
तो फ़िर ऐसे शहरीकरण और विकास की दौड का मतलब ही क्या है?

Friday, April 8, 2011

राष्ट्र चेतना



कवियों अपनी कलम उठाओ
आया समय, कुछ गीत लिखो,
भ्रष्टाचार विरोधी स्वर लिखकर
'अन्ना' के संग मीत लिखो

जाग उठे जन-जन, जागे जन-गण-मन,
         राष्ट्र चेतना जगाने को एक जाग चाहिये
धधक उठे क्रान्ति-ज्वाला  जन-जन में,
         मिटाने अंधियारे को, दावानल आग चाहिये
राष्ट्र्भक्ति के स्वर लिये, क्रान्ति का ज्वर लिये,
         परिवर्तन की आंधियों को, भैरवी राग चाहिये
पुकारे है गंगा मैली, कर डाली मुझे विषैली,
         ऐसे सांप-सपोलो को डसने को, शेषनाग चाहिये